संदर्भ
सरकार सभी नागरिकों को 12 अंको का आधार नंबर दे रही है। जिसके तहत लोगों की निजी सूचनाओं के साथ बायोमेट्रिक्स यानि चेहरे, का विवरण, अंगुलियों के निशान और आंखों की पुतली के निशान का डेटा बेस बनाया जा रहा है। अब जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभ के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने की दिशा में सरकार आगे बढ़ रही है। इसी को शांता सिंह व अन्य लोगों सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीमकोर्ट को कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने से रोकने के लिए दिशा निर्देश जारी करे। याचिका में कहा गया है कि कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार कार्ड को जोड़ने के लिए सरकारी ने 30 जून दे रखी जो पूरी तरह अवैध है। आधार को लेकर 22 याचिकाएं सुप्रीमकोर्ट में दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकार आधार को एकाग्रता शिविर की तरह इस्तेमाल कर रही है। ताकि वो एक ही जगह से सभी नागरिकों की गतिविधियों पर नजर रख सके। इसी के चलते पांच जजों की बेंच ने कहा कि
-ये तय हो कि क्या संविधान के तहत निजता का अधिकार है या नहीं।
-क्या निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 प्राण एवं दैहिक स्वत्ंत्रता का संरक्षण के अंतर्गत आता है। जिसमें ये उल्लेख किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और व्यक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नही किया जा सकता है।
निजता के अधिकार पर अब संवैधानिक स्पष्टता क्यों जरुरी है।।।
आधार की अनिवार्यता पर चल रही सुनवाई अब निजता के अधिकार का संवैधानिक दायरा तय कर रही है। 26 जनवरी 1950 में संविधान लागू होने के 67 साल बाद सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संविधान पीठ इस बात पर विचार कर रही है कि निजता या प्राइवेसी आपका मौलिक अधिकार है। ये इसलिए भी जरुरी है कि
-अगर आधार की सारी जानकारी यानि मोबाइल फोन, बैंक खातों की जानकारी या फिर आपकी पहचान लीक हो जाए
तो आप किस कानून के तहत कोर्ट जाएंगे कि आपकी निजता के अधिकार का हनन हुआ है
क्योंकि सरकार भी हमसे व्यक्तिगत और सार्वजनिक आचरणों में उम्मीद करती है कि आप दूसरों की निजता का ख्याल रखेंगे्।
-निजता के अधिकार पर संवैधानिक स्पष्टता इसलिए भी जरुरी है क्योंकि वैश्वीकरण के इस युग में डिजीटल दौर काफी बड़ा हो गया है।
-गोपनीय सूचनाएं जो हम अनजाने में या जानबूझकर पासपोर्ट बनाने से लेकर सोशल मीडिया तक पर देंते हैं।
इस डाटा का निजी कंपनियां व्यवसायिक इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर मुनाफा कमा रही है।
-अन्तर्राष्ट्रिये कानून में सरकार का ये कर्तव्य है कि कि वो लोगों की निजता को सम्मान और संरक्षण दे।
-निजता के अधिकार पर फैसला आने से सरकार को न सिर्फ आधार कार्ड को लागू करने के मुद्दे स्पष्टता आएगी बल्कि अगर कोई नागरिकों की निजता को खतरे में डालता है तो उन कंपनियों भी कार्रवाई कर सकेगी।
निजता के अधिकार की संवैधानिक पृष्ठभूमि क्या थी
हालांकि 1954 में एमपी शर्मा मामले में 8 जजों की बेंच नें और 1962 में खड़क सिंह के केस में 6 जजों की बेंच ये फैसला सुना चुकी है कि निजता का अधिकार नहीं होता है।
लेकिन इसके बाद अदालत के कई फैसले आए जिसमें निजता के अधिकार की पहचान मूल अधिकार में की गई। प्रख्यात कानूनविद गोपाल सुब्रमणयम ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना, लोगों को सोचने की आजादी का अधिकार देती है। बगैर आजादी और निजता के ये संभव नहीं है। विचारों की स्वतंत्रता तभी रहेगी जब आपकी निजता सुरक्षित और आजाद रहे। निजता आजादी का मूल और अनिवार्य तत्व है। इसी के चलते अब इस मुद्दे पर ज्यादा स्पष्टता लाने के लिए
अटार्नी जनरल ने कहा कि 9 जजों की बेंच का गठन होना चाहिए। इसी के चलते इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश जेएस खहर, जस्टिस जे चेलामेश्वर,जस्टिस एआर बोबड़े, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अब्दुल नजीर सुनवाई कर रहे हैं।
अब तक सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर कब क्या कहा
-इन्कम टैक्स रिटर्न में आधार का नंबर सरकार ने अनिवार्य करने का प्रावधान किया है जिसका सुप्रीम कोर्ट ने सैद्धांतिक तौर पर समर्थन किया है।
-सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में कहा है कि जिनके पास आधार नंबर है वो टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त उसका जरुर उल्लेख करें।
-कोर्ट के आदेश के मुताबिक जिनके पास आधार नंबर नहीं है उन्हें संविधान पीठ का अंतिम फैसला आने तक परेशान होने की जरुरत नहीं है।
-इस साल के बजट में सरकार ने इन्कम टैक्स एक्ट की धारा 139 एए में प्रावधान किया था कि एक जुलाई के बाद टैक्स रिटर्न भरने पर आधार का उल्लेख अनिवार्य होगा
-सुप्रीम कोर्ट ने आधार नंबर की वजह से डेटा लीक होने संबंधी शिकायत पर गंहरी चिंता जताते हुए सरकार को कठोर कदन उठाने को कहा है।
मौजूदा परिपेक्ष्य में क्यों आधार और निजता के अधिकार पर चर्चा हो रही है...
सरकार के ताजा निर्देश में कहा गया है कि आपके मौजूदा मोबाइल के लिए भी आधार जरुरी होगा। इसके लिए एक साल की मोहलत है वर्ना मोबाइल इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। इसी तरह आयकर भरने के लिए भी आधार को अनिवार्य कर दिया गया है। इससे पहले की ये अनिवार्यता सिर्फ कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित थी जो आमतौर पर गरीब तबकों तक ही सीमित थी। लेकिन जब आधार की मोबाइल और आयकर में अनिवार्यता सामने आई तो अमीर तबकों पर ये असर डालने लगी। तभी आधार के चलते निजता के अधिकार को परिभाषित करने का मुद्दा राष्ट्रीय स्तर और मीडिया में जगह पाने लगी है। अभी हाल में महेंद्र सिंह धोनी के आधार की जानकारी लीक होने का मामला सामने आया जिसमें कप्तान धोनी ने सीएएस वीएलई के जरिए अपने घर का विवरण आधार पर अपडेट करवाया था। इसी जानकारी को वहां काम करने वाले एक शख्श ने ट्विट करके बता दी थी।जिससे इस सवाल उठने लगे कि आधार बनाने वाली एजेंसियों में काम करने वाले ज्यादातर लोग प्रशिक्षित नहीं है और उन्हें जरुरी नियमों की जानकारी ही नहीं है।
हालांकि अमरीका में नागरिकों की पेशन की सुविधा के लिए सामाजिक सुरक्षा नंबर यानि सोशल सिक्युरिटी नंबर देने की पहल हुई थी। फिर उस नंबर को अन्य सुविधाओं से जोड़ा गया। लेकिन इस नंबर और आधार में फर्क ये है कि अमरीका में कानून ने ये तय किया हुआ है कि उस नंबर को कौन मांग सकता है और उसका क्या उपयोग होगा।
आधार को लेकर निजता पर सवाल उठाने वालों को सुनना इसलिए भी जरुरी है कि अभी हाल में आधार के जनक नंदन निलेकणी 19 जुलाई 2017 में दिए इंटरव्यू में कहते हैं कि
सिर्फ कुछ डिजीटल प्लेटफार्म के पास डेटा होना डिजीटल मोनोपोली को जन्म देगा। भारत में कोई ऐसी नीति नहीं है जहां ये पता हो कि कैन सी जानकारी साझा करना है और कौन सा निजी है। निलेकणी को लगता है कि प्राइवेसी के लिए नया कानून होना चाहिए क्योंकि उनका इशारा गूगल या फेसबुक जैसी कंपनियों की ओर भी है जिसका सारा डिजीटल नियत्रण अमरीका के सर्वर से होता है।
निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के सवाल
सुप्रीम कोर्ट में निजता के अधिकारी पर सुनवाई चल रही है। फैसला 25 जुलाई को आने की संभावना है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि
निजता का अधिकार ऐसा अधिकार नहीं हो सकता है जो पूरी तरह मिले और सरकार किसी भी तरह का तर्कसंगत कोई बंदिश ही न लगा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब आप एप्पल जैसी प्राइवेट कंपनियों को निजी डाटा दे देते हैं तो सरकार को ये डाटा देने में क्या दिक्कत है।
इन दोनों मामलों में क्या अंतर है। 99 फीसदी लोगों को या तो मालूम नहीं है या उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनकी निजी जानकारी का क्या हो रहा है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप जैसे ही आईपैड या आई फोन पर इस्तेमाल करते हो तो उसमें भी फिंगर प्रिंट देते हो। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि इन प्राइवेट कंपनियों के साथ करार होता है और उल्लंघन करने पर उपभोक्ता कर्रवाई कर सकता है। लेकिन सरकार के साथ उसका कोई करार नहीं होता है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि अगर सरकार अपराधियों का इलेक्ट्रानिक डाटा बेस तैयार करना चाहती है तो क्या उसे रोका जाना चाहिए।